Maharishi Dayanand


:-महर्षि दयानंद ने संस्कार विधि में 8 प्रकार के विवाह निम्नलिखित बताएं है :-

१. ब्रह्म विवाह

यह सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित विवाह माना जाता है। दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या

का विवाह निश्चित कर देना "ब्रह्म विवाह" कहलाता है। सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके

विदा किया जाता है। आज का "Arranged Marriage" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है।

२. दैव विवाह

किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप अपनी कन्या को दान में दे देना "दैव विवाह" कहलाता है।

या यूँ समझें कि कन्या का पिता यज्ञ करने वाले पुरोहित को अपनी सुकन्या का हाथ देता था । यह विवाह भी प्राचीन

काल में आदर्श विवाह का रूप माना जाता था पर आज इसका प्रचलन नहीं है ।

३. आर्श विवाह

कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना "अर्श विवाह" कहलाता

है। यह विवाह प्राचीन काल में ऋषियों की गृहस्थ बनने की इच्छा जाग्रत होने पर विवाह की स्वीकृत पद्धति थी, ऋषी

अपने पसंद की कन्या को गाय बैल का जोड़ा भेंट करता था । कन्या के पिता को रिस्ते की स्वीकृति होने पर कन्या का

दान करता था । परन्तु अस्वीकृति होने पर भेंट सादर लौटा दिया जाता था ।

५. गंधर्व विवाह

परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना "गंधर्व

विवाह" कहलाता है। यह आधुनिक प्रेमविवाह का पारंपरिक रूप है परन्तु इसे आदर्श विवाह नहीं माना जाता ।

६. असुर विवाह

कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना "असुर विवाह" कहलाता है।

७. राक्षस विवाह

कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना "राक्षस विवाह" कहलाता है। यह विवाह

आदिवाशियों के हरण विवाह का ही एक रूप है। एक कबीला दूसरे कबीले से मैत्री करने के उद्देश्य से जीते हुये कबीले की

लड़की को देते थे ।

८. पैशाच विवाह

कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना "पैशाच विवाह" कहलाता है।